शहिद का प्रश्न | Desh prem ki khani | Deshbhakti story

     

 बात उन दिनों की है जब भारत में आजादी की लड़ाई छिड़ी हुई थी। तब कुछ देशभक्त ऐसे भी थे  जो विदेशों में रहते थे। ऐसे ही एक देशभक्त युवक थे करतार सिंह। वे अमेरिका में रहते थे। करतार सिंह ने अमेरिका में रहकर ही अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रखा था। उन्होंने वहां बसे भारतीयों को एकजुट कर रखा था। इससे अमेरिकी पुलिस परेशान थी। जब करतार सिंह की गतिविधियां बढ़ने लगी तब वहां की पुलिस उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई। करतार सिंह पुलिस से बचते-बचाते कोलंबो के रास्ते भारत पहुंचे। यहां आकर वे एक सैनिक छावनी में गए। छावनी में वे भारतीय सैनिकों को अंग्रेज़ो के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाने लगे। एक दिन अंग्रेज पुलिस ने करतार सिंह को पकड़ लिया और उनपर मुकदमा चलाया गया। उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।

जेल में करतार सिंह के दादाजी उनसे मिलने आए। उन्होंने पोते को समझाया, "बेटा अभी तेरी उम्र बहुत कम है। घर में सब का बुरा हाल है। मैंने सुना है कि यदि तुम वायसराय से माफी मांग लोगे तो शायद फांसी से बच जाओगे।"

दादा जी की बात सुनकर करतार सिंह कुछ क्षण तक चुप रहे। फिर  उनसे पूछा "दादा जी, हमारे गांव में रज्जू नाम का एक नौजवान था। वह आजकल कहां है?" दादा जी बोले, " बेटा ,वह पिछले दिनों प्लेग  के कारण मर गया।" इसके बाद करतार सिंह ने अपने एक रिश्तेदार के बारे में पूछा तो दादाजी ने बताया, "वह हैजे से मर गया।"

अब करतार सिंह ने कहा, "दादा जी, आप क्या चाहते है कि आपका पोता अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए न मरे? वह किसी बीमारी से बिस्तर पर पड़ा-पड़ा मर जाए?"

पोते के मुंह में देशभक्ति से भरे हुए शब्द सुनकर दादाजी चुप रह गए। वे उसके प्रति नमस्तक हो गए। करतार सिंह को फांसी दे दी गई। जिस समय मातृभूमि के लिए करतार सिंह ने जान दे दी थी, उस समय उनकी उम्र मात्र 19 वर्ष थी।



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