निर्धन कौन ?
एक बार जंगल में एक यात्री जा रहा था। रास्ते में उसे एक सोने का सिक्का मिला। वह सोचने लगा कि अब मैं इसे लेकर क्या करूं? यह मेरा तो नहीं है, न जाने किस बेचारे का गिर गया है। ऐसे किसी का धन लेना पाप है। यही सोचते हुए वह यात्री जंगल में आगे बढ़ रहा था। रास्ते में उसने एक साधु को माला जपते हुए देखा। उसने सोचा क्यों ना मैं यह सोना का सिक्का इस साधु को दे दूं। यात्री ने जब वह सिक्का साधु को दिया तो सोने के सिक्के देखकर साधु ने आश्चर्य से कहा- भाई! यह सिक्का हमारे जैसे साधुओं के लिए नहीं है। इसे तो किसी गरीब को दे दो ताकि वह अपना पेट भर सके। साधु की बात मानकर यात्री आगे चला गया तो उसने देखा कि किसी राजा की बहुत बड़ी सेना चली आ रही है। इतनी बड़ी सेना को देखकर वह सोचने लगा कि जरूर कोई विशेष बात होगी जो राजा अपनी सेना को लिए जा रहा है। उसने एक सैनिक से पूछा है कि- भाई! यह राजा इतनी बड़ी सेना को कहां लिए जा रहा है? "यह राजा डोगर सिंह है। जो पड़ोसी देश पर आक्रमण करके उसे लूटने जा रहा है।" "राजा होकर भी लूटमार करता है इतना बड़ा राजा तो गरीबी रेखा से भी नीचे लगता है।" "क्यों ना यह सोने का सिक्का इसी राजा को दे दिया जाए। साधु ने ठीक ही कहा था कि जो सबसे अधिक गरीब नजर आए उसे ही यह सिक्का दे देना।" यात्री राजा जी के रथ के करीब जा पहुंचा। उसने सोने का सिक्का राजा के चरणों में फेंक कर कहा- लो महाराज! आप इसे रख लो। "ऐसा क्यों ?" "महाराज! एक साधु ने कहा था कि जो भी आपको सबसे गरीब आदमी नजर आए तो उसे ही यह सिखा दे देना।' "मैं राजा हूं, राजा। मैं आपको गरीब लगता हूं क्या?" "महाराज! यदि आप अमीर होते तो दूसरे देश को लूटने के लिए इतनी बड़ी सेना लेकर क्यों जाते?" राजा ने उस यात्री की ओर देखा तो उसे अपनी भूल का एहसास हो गया। उसने उस यात्री को बहुत-बहुत धन्यवाद कहा तथा अपनी सेना को वापस जाने का आदेश दिया।