समास [compound words]| Samas in hindi
जब दो या दो से अधिक शब्द अपनी-अपनी विभक्तियां छोड़कर मिलते हैं तो इनके योग को समास कहते हैं। अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने पद को समास कहते है।
[समास का मुख्य उद्देश्य अनेक शब्दों के लिए एक शब्द देना है। दूसरा समास का अर्थ होता है - संक्षेप ।]
समास के उदाहरण
विद्यालय - विद्या के लिए आलय। गंगाजल - गंगा का जल । नीलकमल - नीला है जो कमल।
समास के भेद :
1. तत्पुरुष समास
2. कर्मधारय समास
3. बहुव्रीहि समास
4. द्वंद्व समास
5. द्विगु समास
6. अव्ययीभाव समास
1. तत्पुरुष समास - तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है। अर्थात् जिस शब्द के अंत का पद प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - राजकुमार, पाठशाला, दानवीर, विषधर, निदेशालय, हलधर इत्यादि।
एक उदाहरण को विश्लेषित करके देखिए- राजा का कुमार (पुत्र) में कुमार प्रधान पद है। इसी प्रकार पाठशाला में पाठ कि शाला (घर) में शाला प्रधान पद है।
[तत्पुरुष समास में कर्ता को छोड़ शेष सभी कारक पद होते हैं, परंतु समास होने पर उनके विभक्ति-चिन्हों का लोप हो जाता है।]
(a) कर्म तत्पुरुष :
गगनचुंबी = गगन को चुमनेवाला।
मुंहतोड़ = मुंह को तोड़नेवाला।
जानलेवा =जान को लेने वाला।
चिड़ीमार =चिड़िया को मारनेवाला।
(b) करण तत्पुरुष:
शोकाकुल = शौक से आकुल।
नीतियुक्त = नीति से युक्त।
मुंहमांगा = मुंह से मांगा।
कामचोर = काम से चुरानेवाला।
(c) संप्रदान तत्पुरुष:
देवालय = देव के लिए आलय।
रसोईघर = रसोई के लिए घर।
गोशाला = गो के लिए शाला।
रंगमंच = रंग के लिए मंच ।
(d) अपादान तत्पुरुष:
नेत्रहीन = नेत्र से हीन।
धनहीन = धन से हीन।
पापमुक्त= पाप से मुक्त।
बलहीन = बल से हीन।
(e) संबंध तत्पुरुष:
रामायण = राम का अयन।
गंगाजल = गंगा का जल।
देशभक्ति = देश की भक्ति।
राजदरबार=राजा का दरबार।
(f) अधिकरण तत्पुरुष:
स्नेहमग्न = स्नेह में मग्न।
दानवीर = दानियो में वीर।
सर्वोत्तम = सर्व में उत्तम।
गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
2. कर्मधारय समास - कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय समास कहते हैं। जो समास विशेषण और विशेष्य के मिलने से बनते हैं, उन्हें कर्मधारय समास करते हैं। इसमें पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है। जैसे -
- नीलगाय = नीली गाय।
- लम्बोदर = लंबा उदर।
- परमेश्वर = परम ईश्वर।
- मृगनयनी= मृग के समान नयन वाली।
- भवनसागर=भवरूपी सागर।
- महाकवि = महान है जो कवि।
- प्रियसखा= प्रिय है जो सखा।
3. बहुव्रीहि समास - बहुव्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। अर्थात जो शब्द अपने अर्थ को छोड़कर भिन्न तथा विशेष अर्थ प्रकट करता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे -
- पंकज= पंक से जन्म लेने वाला अर्थात कमल।
- लंबोदर= लंबा है जिसका उदर अर्थात गणेश।
- श्यामसुंदर= श्याम होते हुए भी जो सुंदर है अर्थात श्री कृष्ण।
- मर्यादापुरुषोत्तम= मर्यादा निभाने वाले पुरुषों में सर्वोत्तम है जो यानी राम।
- पितांबर= पीला है अंबर जिनका वे अर्थात विष्णु।
- माखनचोर= माखन चुराने के कारण जो प्रसिद्ध है अर्थात श्री कृष्ण।
- जितेन्द्रिय= इंद्रियों को जीत लेने वाले जो है अर्थात शंकर।
4. द्वन्द्व समास - द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। उनके बीच में और,अथवा,तथा (संयोजक) लुप्त हो जाते हैं। जैसे -
- हाथ-पाव =हाथ और पांव।
- माता-पिता =माता और पिता।
- भाई-बहन =भाई और बहन।
- पाप-पुण्य =पाप और पुण्य।
- घर-द्वार =घर और द्वार।
- राधा-कृष्ण =राधा और कृष्ण।
- अन्न-जल =अन्न और जल।
- लेन-देन =लेन और देन।
- लोटा-डोरी =लोटा और डोरी।
- प्रश्न-उत्तर =प्रश्न और उत्तर।
- शब्दार्थ =शब्द और अर्थ।
- लाभ-हानि =लाभ और हानि।
5. द्विगु समास - जिसका पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा पद प्रधान हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे -
- चौराहा =चार राहों का समाहार।
- अष्टाध्यायी =अष्ट (आठ) अध्यायों का समाहार।
- त्रिभुवन =तीन भुवनों का समाहार।
- त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार।
- पंचवटी =पांच वटों का समाहार।
- पंचरत्न =पांच रत्नों का समाहार।
- पसेरी =पांच सेरों का समाहार।
- त्रिकाल =तीनों कालों का समाहार।
- सतसई =सात सौ का समाहार।
- त्रिफला =तीन फलों का समाहार।
6. अव्ययीभाव समास - जो शब्द अव्यय और संज्ञा के मिलने से बनते हैं, उन्हें अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे -
- यथासंभव =जितना संभव हो।
- प्रतिदिन =प्रत्येक दिन।
- भरपेट =पेट भर।
- यथाशक्ति =जितनी सकती हो।
- हाथोंहाथ =एक हाथ से दूसरे हाथ।
- आजीवन =जीवन भर के लिए।
- यथार्थ =अर्थ के अनुसार।
- मनमाना =मन के अनुसार।
- बेरहम =बिना रहम के।
- यथारुचि =रुचि के अनुसार।
बहुव्रीहि समास की क्या विशेषताएं हैं?
बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएं है :-
- बहुव्रीहि समास दो या दो से अधिक पदों का होता है।
- इसके पदों के अर्थ से अलग अर्थ प्रधान होता है।
- इसका विग्रह शब्दों या पदों में ना होकर वाक्यों में होता है।
- इसका पहला पद प्राय: कर्ताकारक का होता है अथवा विशेषण का।
- इस समास से बने पद विशेषण होते हैं। इसीलिए इनके लिंग विशेष्य से अनुरूप होते हैं।
संधि और समास में क्या अंतर है?
- समास में पदों के बीच के विभक्ति-चिन्ह हटा दिए जाते हैं जबकि संधि में दो वर्णों के मेल से विकार की संभावना रहती है। समास में ऐसा मेल और विकार नहीं होता।
- समास में दो या अधिक पदों का योग होता है, जबकि संधि में वर्णों का योग होता है।
- संधि में शब्दों को तोड़कर अलग-अलग करने को विच्छेद कहते हैं, जबकि समास में इस क्रिया को विग्रह कहते हैं। जैसे - 'पीतांबर' में दो पद - 'पित' और 'अंबर' संधि-विच्छेद होगा - पित + अंबर = पितांबर। इसी शब्द का समास विग्रह होगा या पदों में संधि होती है। समास के ऊपर ऐसा कोई बंधन नहीं है। समास किसी भी एक या एक से अधिक मात्राओं के पदों में हो सकता है। इसलिए हिंदी पदों के समास में संधि को आवश्यक नहीं माना गया है।